असीम राज पांडेय, केके शर्मा
रतलाम। फूल छाप पार्टी की जनआशीर्वाद यात्रा के बाद पिछले सप्ताह पंजा छाप पार्टी की जन आक्रोश यात्रा रतलाम आई। लेकिन जो आक्रोश दिखाना चाहिए वह दिखा नहीं पाई। इसका कारण बने दल बदल में माहिर पंजा छाप पार्टी के एक नेता जो कि सड़कों की बजाए सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते है। शहर के मध्य बने मंच से टिकट के दावेदारों को बोलने का मौका दिया। दल बदलने में माहिर रह चुके यह नेता माइक छोड़ने का नाम नहीं ले रहे थे। जबकि आक्रोश यात्रा में जिन्हें आक्रोश दिखाना था, वह चुपचाप बैठकर नींद की झपकी लेते रहे। आखिरकार भीड़ में से छोटे कार्यकर्ताओं ने आवाज लगा ही दी और उक्त नेता को माइक छोड़ने के लिए मजबूर किया। फिर भी वह मानने को तैयार नहीं थे। इधर यात्रा की कमान संभालने वाले इंदौर जिले से आए नेताजी को आखिरकार खड़ा होना पड़ गया और राजधानी में खूब दाल-बाफले खिलाने वाले नेताजी को वहां से हटना पड़ा। आक्रोश यात्रा के माध्यम से जो आक्रोश हाथ छाप को दिखाना तो वह केवल रस्मअदायगी तक ही सीमित रहा।
मुलाकातें राजनीति गलियारे में चर्चा को कर चुकी गरम
फूलछाप पार्टी के कद्दावर नेता से पंजाछाप पार्टी के कद्दावर नेता के अलावा रतलाम की प्रतिभाओं को सम्मानित करने पहुंचे महामहिम की मुलाकात सोशल मीडिया के अलावा राजनीति गलियारों में चर्चा का केंद्र बिंदु बनी हुई है। पंजाछाप पार्टी के कद्दावर नेता ने फूलछाप पार्टी के कद्दावर नेता से संवाद के दौरान कहा कि पहले भी कृपा मिली अब आपका आशीर्वाद चाहिए। उक्त संवाद की चर्चा को विराम लगता उसके पहले महामहिम का फूल छाप के वरिष्ठ नेता के घर पहुंचना पार्टी में हलचल पैदा कर चुका है। सोशल मीडिया पर समर्थक अपने-अपने नेताओं के बारे में शब्दों के माध्यम से राजनीति में गरमाहट लाने के लिए हवा दे रहे हैं। ये अंदर की बात है कि दोनों नेताओं का फूलछाप पार्टी के वरिष्ठ नेता से मिलने का मामला आमजन को जलेबी नहीं चाश्नी में डूबी इमरती की तरह नजर आ रहा है। आगामी चुनाव में देखना होगा कि इन खास मुलाकातों के क्या परिणाम रहेंगे।
हफ्ते की सजा का आक्रोश उतर न जाए चुनाव पर
खाकी वाले विभाग में अधीनस्थों को हर हफ्ते सजा कहीं सत्ताधारी पार्टी के स्थानीय नेता को भारी न पड़ जाए। खाकी के इस विभाग के नए साहब के फरमान से काम करने वाले कर्मचारी और उनके परिवार ज्यादा परेशान हैं। हफ्ते में मिलने वाली सजा से आक्रोश इस कदर पनप गया है कि विधानसभा चुनाव में खुद तो ठीक अपने परिवार और आस-पड़ोस के अलावा परिचितों को समझाइश देने लगे हैं कि अबकी बार सोच-समझ कर वोट का उपयोग करना। ये अंदर की बात है कि साहब के हफ्ते की डायरी से भले ही थानों पर पदस्थ कर्मचारियों के कार्यों में कसावट हो रही है लेकिन खुद के कार्यालय में मातहतों को खुली छूट मिली हुई है। पक्षपात के चलते महकमें में जोरों पर चर्चा है कि इस तरह से पहली बार हो रहे पक्षपात में जिले की कमान संभालने वाले साहब की शह का गुबार आगामी चुनाव में नहीं फूट जाए।