असीम राज पांडेय, केके शर्मा
रतलाम। कहावत है कि नेताओं की कथनी और करनी में अंतर होता है। यह कहावत चुनावी समय में नजर आने लगी है। दरअसल एक सेना के “कर्ता-धर्ता” आरक्षण खत्म करने को लेकर समाजजनों को एकजुट कर सरकार को हिलाने की हुंकार भर चुके हैं। ऐसे में इन्होंने बड़े-बड़े सपने देखे, फिर भी इनकी दाल ना तो फूलछाप और नहीं हाथछाप पार्टी में गली। अब जिले के नवाबों की नगरी से निर्दलीय रूप से मैदान में है। रतलाम ग्रामीण से हाथछाप पार्टी से चुनाव लड़ने का सपना टूटने पर डॉक्टर की निर्दलीय दावेदारी में आरक्षण हटाने की मांग करने वाले सेना के कर्ता-धर्ता कंधे से कंधा मिलाते नजर आए। डॉक्टर के नामांकन जमा के दौरान सेना के कर्ता-धर्ता आगे-आगे दिखे। यह वहीं कर्ता-धर्ता है जो कि सामान्य वर्ग के हितों व आरक्षण खत्म करने की बड़ी-बड़ी बातें कर विधानसभा चुनाव में 80 स्थानों पर अपने टिकट की मांग कर रहे थे। ऐसे में चर्चा है कि अब इनकी मांग आरक्षण हटाने की नहीं बल्कि आरक्षण बचाने की होगी।
संकोच के साथ “अनुज” ने पहनाया हार
विधानसभा चुनाव के घमासान में अब राजनीति चेहरों के बदलते रंग भी नजर आ रहे हैं। फूलछाप पार्टी में शहर माननीय का पूर्व मंत्री के हाथों अभिनंदन और विजयश्री की शुभकामनाओं के बीच चर्चा का जोर फूलछाप के प्रतिद्वंदी प्रत्याशी का पूर्व मंत्री के “अनुज” के हाथों हार पहनाना है। घर आए मेहमान का सत्कार भारतीय संस्कृति की परंपरा है लेकिन ऐसे प्रत्याशी को रैली में सार्वजनिक चौराहे पर हार पहनाने के मायने अलग देखे जा रहे हैं। रतलाम के डालूमोदी चौराहा पर पूर्व मंत्री के “अनुज” ने हाथछाप प्रत्याशी को हार पहनाने से पहले एक सेकंड का संकोच करना और उसके बाद मुस्कुराते हुए हार पहनाकर हाथ मिलाना राजनीति विद्वानों को मुद्दे पर सोचने के लिए मजबूर कर चुका है। ये अंदर की बात है कि पूर्व मंत्री के “अनुज” पार्टी के प्रतिद्ंवदी प्रत्याशी को हार पहनाने के दौरान भले ही पुराने गिले-शिकवे भूल चुके हों लेकिन चर्चा है कि उन्होंने ऐसे शख्स को हार पहनाकर हाथ मिलाया है जिसने बड़े भाई का ग्राफ गिराया।
कैबिनेट मंत्री दर्जा प्राप्त “नेताजी” गायब
चुनावी माहौल में फूलछाप पार्टी से कैबिनेट मंत्री दर्जा प्राप्त “नेताजी” गायब हैं। फूलछाप पार्टी ने पद देकर भले ही चुनाव में गुटबाजी के चलते जिम्मेदारी नहीं सौंपी हो लेकिन जनता के सवाल लाजमी है। कैबिनेट मंत्री दर्जा प्राप्त “नेताजी” ने शहर प्रत्याशी और शहर माननीय के नामांकन में दूरी बनाकर ग्रामीण में उत्साह दिखाया, वहीं दूसरी तरफ पार्टी के आकाओं की मानें तो स्थानीय स्तर पर “नेताजी” को जिम्मेदारी इसलिए नहीं सौंपी गई कि कहीं वे डैमेज न कर दें। नतीजतन कैबिनेट मंत्री दर्जा प्राप्त “नेताजी” इन दिनों अपने पार्टी मुखिया के मैदान में व्यस्त हैं। उनकी निगाह अब अपने मुखिया को विजय मिलने के बाद प्रदेश में वरिष्ठ जिम्मेदारी पर टिकी है। देखना यह है कि आने वाले समय में कौन नेता कितना प्रबलशाली रहेगा क्योंकि ये अंदर की बात है कि प्रदेश की कमान उसी को सौंपी जाएगी जिसका व्यवहार कुशल हो।