रतलाम, वंदेमातरम् न्यूज।
रतलाम शासकीय मेडिकल कॉलेज में फूड पॉइजनिंग की औपचारिक जांच कर खुद को क्लीन चीट देने वाले डीन डॉ. जितेंद्र गुप्ता का विवादों से पुराना गहरा नाता है। हाल ही में मेडिकल कॉलेज में अध्ययनरत 40 से अधिक स्टूडेंट रेलकर्मी दीपेश पाठक की अवैध मैस में दूषित खाने से बीमार होने के बाद सुर्खियों में आए डीन डॉ. गुप्ता ने जांच कमेटी को भी संशय के घेरे में ला खड़ा किया। दिखावे की जांच के लिए डीन डॉ. गुप्ता ने कमेटी तो बनाई लेकिन कमेटी में किस स्तर के कौन-कौन डॉक्टरों को किन-किन बिंदुओं पर जांच सौंपी इन सभी सवालातों को छिपाकर रखा हुआ है। पूरे मामले में गुरुवार को वंदेमातरम् न्यूज की ओर से डीन डॉ. जितेंद्र गुप्ता और अधीक्षक डॉ. प्रदीप मिश्रा से संपर्क किया लेकिन उनके द्वारा गैर जिम्मेदाराना रवैया दिखाते हुए फोन रिसीव नहीं किया।
मालूम हो कि 10 मार्च की रात कॉलेज में खाना खाकर 40 स्टूडेंट गंभीर रूप से बीमार हो गए थे। पूरे मामले की निष्पक्षता से जांच के बजाए मेडिकल कॉलेज प्रशासन कटघरे में खड़ा रहा। कॉलेज प्रशासन ने अवैध मेस संचालनकर्ता रेलकर्मी दीपेश पाठक को कानूनी कार्रवाई से बचाने के लिए बीमार स्टूडेंट की एमएलसी नहीं कराई और न ही खाद्य एवं सुरक्षा विभाग को सूचना देना उचित समझा। आरोपों से बचने के लिए कॉलेज प्रशासन स्तर पर कमेटी बनाकर जांच की औपचारिकता निभाकर खुद को क्लीन चीट देने की पूरे मामले में कोशिश की गई। आमजन में सवाल है कि जो आरोपों से घिरा रहता है वह आखिर खुद कैसे जांच करवाने के लिए कमेटी बना सकता है? जांच की निष्पक्षता पर सवाल यह भी है कि डीन के अधीनस्थ कमेटी में शामिल कॉलेज के डॉक्टर डीन और अवैध मेस संचालनकर्ता के खिलाफ जांच कैसे करते? इसके अलावा जांच कमेटी ने अवैध मेस स्वास्तिक केटर्स के संचालनकर्ता रेलकर्मी दीपेश पाठक से जवाब लिए बिना अंतिम जांच रिपोर्ट कैसे प्रस्तुत की?