रतलाम, वंदेमातरम् न्यूज।
जिले के शासकीय मेडिकल कॉलेज में एक के बाद एक अनियमित्ताओं के बावजूद वरिष्ठ अधिकारियों पर डीनशाही हावी है। मामला चाहे नियम विपरित संचालित रेलकर्मी दीपेश पाठक की मेस में दूषित खाने से 40 से अधिक स्टूडेंट के बीमार का हो या फिर अनुभवी को दरकिनार कर जूनियर नर्स को डिप्टी नर्सिंग सुप्रिंटेंडेट की जिम्मेदारी सौंपना। इतना ही नहीं कोरोना काल में की गई लाखों रुपए की आर्थिक अनियमित्ता का मामला। इन सबके बावजूद वरिष्ठ अधिकारी दोषी पर कार्रवाई क्यों नहीं कर रहा? यह सवाल आमजन में अब चर्चा का विषय बना हुआ है।
मालूम हो कि 11 मार्च की सुबह फूड पॉइजनिंग की घटना सामने आने के बाद मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. जितेंद्र गुप्ता वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत नहीं कराया था। मीडिया से मामला उजागर होने पर घटना के 36 घंटे बाद दिखावे के लिए जांच कमेटी गठित की। डीन डॉ. गुप्ता के अधीनस्थ कमेटी में शामिल किए गए और औपचारिकता की एक रिपोर्ट तैयार की गई। इसके बाद दोषी मामले को रफा-दफा करने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों को भ्रामक जानकारी देने में जुट गए। जिले के एकमात्र शासकीय मेडिकल कॉलेज की छवि को अनियमित्ताओं से बदनाम करने वालों को आखिर किसके संरक्षण में बचाया जा रहा है? यह सवाल चौराहे-चौराहे पर आमजन चर्चा के दौरान उठा रहे हैं। सूत्रों की मानें तो गड़बडियों का केंद्र शासकीय मेडिकल कॉलेज में सत्ताधारी पार्टी के अलावा संगठन के कुछ लोग दोषियों को बचाने में जुटे हैं, नतीजतन वरिष्ठ अधिकारियों में हिम्मत नहीं की वह आए दिन हो रही गड़बडिय़ों के संबंध में मेडिकल कॉलेज के जिम्मेदार से सवाल कर कार्रवाई कर सकें। हाल ही में रतलाम आए संभागायुक्त संदीप यादव की मीडिया से दूरी रखना भी अब कई सवाल खड़े कर रहा।
डीन डॉ. शशि गांधी को हटाने में भी अहम भूमिका!
डीन डॉ. संजय दीक्षित के स्थानांतरण पश्चात 13 अक्टूबर 2020 को डॉ. शशि गांधी को शासन ने शासकीय मेडिकल कॉलेज के डीन की जिम्मेदारी सौंपी थी। मेडिकल कॉलेज सूत्रों की मानें तो कोविड-19 में डीन डॉ. गांधी के कार्यों में सहयोग नहीं कर उनकी छवि खराब करने में कुछ जिम्मेदारों ने विशेष भूमिका निभाई थी। नतीजतन शासन ने उन्हें अप्रैल-2021 में हटा दिया था और कॉलेज अधीक्षक डॉ. गुप्ता को डीन जैसे महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी सौंपी। इसके पश्चात सिलसिलेवार अनियमित्ताओं ने शासकीय मेडिकल कॉलेज की छवि पर बट्टा लगाया, लेकिन सत्ताधारी पार्टी और संगठन ने चुप्पी साधे रखी। डॉ. गुप्ता के पहले डीन जैसे महत्वपूर्ण पद पर डॉ. दीक्षित और डॉ. गांधी पदस्थ रहे, लेकिन उनके कार्यकाल में एक भी ऐसी गड़बड़ी नहीं हुई जिससे कॉलेज प्रशासन पर अंगुली उठी हो।