जयदीप गुर्जर
रतलाम, वंदेमातरम् न्यूज।
जिले में आमजन के लिए एकमात्र शासकीय अस्पताल वर्तमान में खुद बीमार पड़ा है। ऐसे में गरीब वर्ग के साथ इलाज के नाम पर सिर्फ धोखा हो रहा है। अस्पताल प्रशासन स्वास्थ्य सेवाओं से लेकर मैनेजमेंट तक में फिसड्डी साबित हो रहा है। शासकीय अस्पताल में पिछले कुछ महीनों से सरकार के बेहतर चिकित्सा सुविधा के बड़े-बड़े दावे खोखले नजर आ रहे है। गम्भीर मरीजों के लिए बनाए गए आईसीयू में ऑक्सिजन बदलने के लिए समय पर कर्मचारी तक मौजूद नहीं मिलते। यहां तक की वार्ड बॉय ठीक से अपनी ड्यूटी निभाने में नाकाम है। जिससे परेशान होकर मरीज के परिजन निजी अस्पताल या बड़ोदरा के अस्पतालों में जाने के लिए मजबूर है। बड़ी बात तो यह है कि प्रशासन का कोई भी जिम्मेदार पिछले 3 सालों में अस्पताल के औचक निरीक्षण करने तक नहीं पहुंच पाया है। अस्पताल में अफसरों व डॉक्टरों के मनमर्जी का खेल जारी है। स्ट्रेचर तक के लिए परिजनों को इधर-उधर भटकना पड़ता है। स्ट्रैचर मिल भी जाए तो उस स्ट्रैचर को धक्का मारने वाला अपनी ड्यूटी से गायब रहता है।
मॉनीटर तक काम नहीं कर रहे
चिकित्सालय में उपचाररत एक मरीज ने नाम ना बताने की शर्त पर कई गम्भीर जानकारी दी। मरीज का कहना था की सीसीयू में बेड खाली होने के बाद भी उसमें भर्ती नहीं किया जाता। जबकि सीसीयू वार्ड अप टू डेट है। इसमें भर्ती कर भी लेते हैं तो कुछ घण्टो में आईसीयू के मरीज को छुट्टी देकर बेड खाली करवाकर आईसीयू में शिफ्ट कर देते हैं। आईसीयू में 2 से 3 बेड पर तो हार्ट रेट, बीपी आदि दिखाने वाले मॉनीटर तक खराब पड़े हैं। सूत्रों से यह जानकारी भी मिली की सोमवार दोपहर आईसीयू में भर्ती बुजुर्ग मरीज के ऑक्सिजन सिलेंडर का ध्यान नहीं रखा गया। जब नर्सों को जानकारी मिली तो ऑक्सिजन सिलेंडर बदलने वाले कर्मचारी को ढूंढना पड़ा। आखिर में उसकी मृत्यु हो गई। आईसीयू के बाथरूम में बल्ब ना होने से एक वृद्धा बाथरूम में स्लिप भी हुई। जिसे परिजन खुद डिस्चार्ज कर बेहतर इलाज के लिए गुजरात ले गए। मरीज के परिजनों को डॉक्टर या स्टाफ नर्स सही से जानकारी तक नहीं मुहैय्या करवाते।
डर से शिकायत तक नहीं करते
वंदेमातरम् न्यूज की पड़ताल में यह जानकारी सामने आई की सीएम हेल्पलाइन की शिकायतों को अस्पताल के अधिकारी अपने स्तर पर ही निपटा देते है। वहीं कोई मरीज या परिजन डॉक्टर के ड्यूटी राउंड, साफ-सफाई, इलाज आदि की शिकायत वहां के स्टाफ से करता भी है तो स्टाफ उन्ही को दो बातें सुनाकर चुप कर देता है। कई लोग शिकायत के बाद मरीज का इलाज सही ना होने के डर से भी नहीं बोलते। वहीं ऐसा भी देखने में आया की ऑन कॉल रहने वाले ड्यूटी डॉक्टर के फोन भी बंद मिले। ऐसे में बड़ा सवाल यह है की मरता आदमी करे तो, क्या करें?