रतलाम, वंदेमातरम् न्यूज।
डॉ.जलज ने अपनी रचनाओं और खास तौर पर अपने संस्मरणों के माध्यम से युवाओं से ही नहीं समाज के प्रत्येक व्यक्ति से संवाद करने की कोशिश की है और वे इसमें सफल भी हुए हैं। दरअसल एक रचनाशील व्यक्ति हमेशा समाज के लिए सोचता है। अपने जीवन के अनुभवों से वह समाज को दिशा देता है। यह बात रतलाम शहर विधायक चेतन्य काश्यप ने कही। वे शासकीय कला एवं विज्ञान महाविद्यालय में महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. जयकुमार जलज के सम्मान समारोह एवं उनके संस्मरणों की पुस्तक “मैं प्राचार्य बना” के विमोचन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि अनुभव से व्यक्ति बड़ा होता है। विद्यार्थियों को प्रोत्साहन की आवश्यकता होती है। ऐसे व्यक्तियों से विद्यार्थी प्रेरणा ग्रहण करते हैं। विधायक काश्यप ने डॉ. जलज द्वारा लिखित पुस्तक ”भगवान महावीर का बुनियादी चिंतन” का जिक्र करते हुए कहा कि यह पुस्तक प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश और विदेश में भी न केवल जैन धर्म के अनुयायियों के बीच बल्कि सभी वर्गों के लोगों के बीच लोकप्रिय हो रही है। उन्होंने कहा कि रतलाम के सम्यक विकास की जो परिकल्पना साकार हो रही है उसमें शिक्षा और साहित्य को भी नई पहचान मिलेगी।
राजनीति जब लड़खड़ाती है तो साहित्य उसे ताकत देता है – “मैं प्राचार्य बना” पुस्तक के लेखक डॉ जयकुमार जलज ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि राजनीति जब लड़खड़ाती है तो साहित्य उसे ताकत देता है। इसलिए यदि राजनीतिक नेतृत्व साहित्यिक दृष्टि से संपन्न हो तो राजनीति की दिशा भी बदलती है। जनप्रतिनिधि यदि अच्छे होते हैं तो वहां विकास भी अच्छा होता है। डॉ. जलज ने कहा कि हम इस मायने में सौभाग्यशाली हैं कि रतलाम नगर को पढ़ने और लिखने वाला दृष्टि संपन्न नेतृत्व मिला है। उन्होंने डॉ. राजेंद्र प्रसाद, बिनोवा भावे, महात्मा गांधी आदि नेताओं का जिक्र करते हुए कहा कि आजादी के आंदोलन के जितने भी बड़े नेता थे वे किसी न किसी रूप में साहित्य अथवा पत्रकारिता से जुड़े थे। “मैं प्राचार्य बना” पुस्तक में संग्रहीत अपने संस्मरणों पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि एक प्रशासक के रूप में विद्यार्थियों, कर्मचारियों और शिक्षकों का न केवल मुझे सहयोग मिला बल्कि उनसे बहुत कुछ सीखने को भी मिला। स्थितियां कैसी भी रही हों मैंने सभी को साथ लेकर चलने का प्रयास किया। डॉ. जलज ने कहा कि विद्यार्थी अपने अधिकार के लिए लड़ते हैं, संघर्ष करते हैं, तो अच्छा लगता है। इससे यह मालूम होता है कि वे अपने हक के लिए कितने जागरूक हैं।
रतलाम नगर को भी नई साहित्यिक पहचान दी है – महाविद्यालय की जनभागीदारी समिति के अध्यक्ष विनोद करमचंदानी ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि डॉक्टर जलज के संस्मरण भावी प्राचार्यों के लिए अनुकरणीय तो होंगे, ही पथ प्रदर्शक भी रहेंगे। उन्होंने कहा कि डॉ. जलज ने न केवल अपने रचना कर्म से बल्कि अपने व्यवहार और कुशल प्रशासनिक शैली से महाविद्यालय के साथ-साथ रतलाम नगर को भी नई साहित्यिक पहचान दी है। इसलिए आज उनका सम्मान करते हुए इस संस्था का भी गौरव बढ़ रहा है। स्वागत उद्बोधन में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. वायके मिश्र ने कहा कि उत्तर प्रदेश के ललितपुर में जन्मे डॉ. जलज ने मध्य प्रदेश को अपनी कर्मभूमि बनाया। अपनी शासकीय सेवा के उत्तरार्ध में उन्होंने लगभग 23 वर्षों तक रतलाम में अपनी सेवाएं दी हैं, जिसमें 13 वर्षों तक वे कला एवं विज्ञान महाविद्यालय के प्राचार्य रहे। कई प्रादेशिक और राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त कर चुके डॉ. जलज उम्र के इस पड़ाव पर भी रचनात्मक रूप से सक्रिय हैं यह बड़ी बात है। कार्यक्रम में अतिथियों द्वारा शॉल एवं श्रीफल से डॉक्टर जलज का सम्मान किया गया एवं उनके द्वारा लिखित संस्मरणों का संग्रह “मैं प्राचार्य बना” का विमोचन किया गया।
इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. प्रकाश उपाध्याय, आशीष दशोत्तर, विष्णु बैरागी, सुभाष जैन, जनभागीदारी समिति के पूर्व अध्यक्ष सुरेंद्र सुरेका, महेंद्र नाहर, गुमानमल नाहर, पूर्व प्राचार्य डॉ. संजय वाते, डॉ. कमला शर्मा, कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ.आरके कटारे, डॉ. सुरेश कटारिया एवं बड़ी संख्या में नगर के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। संचालन डॉ. सीएल शर्मा ने किया एवं आभार डॉ अर्चना भट्ट ने माना।