रतलाम, वंदेमातरम् न्यूज।
जिले में बाल श्रमिक यानी मजदूरी करते बच्चे हम और आप आसानी से रोज देख रहे है, मगर इसके लिए जिम्मेदार विभाग केवल कुर्सियां तोड़ रहा है। जी हां! हम बात कर रहे है रतलाम जिले के श्रम विभाग की। जहां पूरा साल गुजर जाने के बाद बाल श्रम पर कार्रवाई के नाम पर केवल खानापूर्ति है। रतलाम में कई परिवार ऐसे हैं जो अपनी जरूरतों के चलते बच्चों का भविष्य अंधकारमय बनाने में लगे है।
जिलेभर में मोटर गैरेज, होटलों, किराना दुकानों, रेस्टोरेंट, प्लास्टिक बीनने, उद्योगों आदि में बाल श्रम करते बच्चे आसानी से देखे जा सकते है। लेकिन ऐसे में जिम्मेदार मुंह फेर कर शिकायतकर्ता का इंतजार करते है। वहीं लंबे समय में कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं होना सांठगांठ की और भी इशारा करता है। सूत्रों की माने तो जिम्मेदार कार्रवाई की आड़ में वसूली का खेल कर जाते है। वसूली की जिम्मेदारी विभाग के एक छोटे कद के बाबू की है। जो सारा हिसाब किताब का खेल देखता है। वहीं उज्जैन बैठे बड़े बाबू विभाग में महीनों तक झांकने नहीं आते।
कोरोना काल के बाद से श्रम विभाग में जिला श्रम अधिकारी का पद खाली पड़ा है। यहां कमान लेबर इंस्पेक्टर निशा गणावा संभाल रही है। लेबर इंस्पेक्टर निशा गणावा से जब सालभर के निरीक्षण पर प्रश्न पूछा गया तो उन्होंने अनुमानित 20 निरीक्षण करना बताया। मगर उन निरीक्षण की कब और कहां की जानकारी वे नहीं दे पाई। उनका कहना है कि शिकायत आती है तो कार्रवाई करते है। लेकिन 2022 में एक भी प्रकरण बाल श्रम के अंतर्गत नहीं बनाया गया। इस विभाग के जिम्मेदार कभी कुर्सियां छोड़कर फील्ड में नजर नहीं आए।
नियम जिनका जिले में नहीं हो रहा पालन
कानून और नियमों के मुताबिक ऐसे बच्चे जिनकी उम्र 14 वर्ष से कम है। उन बच्चो से किसी भी तरह का श्रम नहीं करवाया जा सकता है। यह बाल श्रम अपराध की श्रेणी में आता हैं। वहीं जो बच्चे जिनकी उम्र 14 से 18 वर्ष के बीच है, उनसे भी जोखिम भरा या भारी काम नही लिया जा सकता है। ऐसा करते पाए जाने पर बाल श्रम अधिनियम 2016 की धारा 3 एवं 3A के अनुसार दुकान संचालक पर 20 से 50 हजार का जुर्माना व 6 माह से 2 वर्ष तक कारावास का प्रावधान है। निरन्तरित कार्य पर पर रखने पर धारा 14(2) के अंतर्गत एक से 3 वर्ष का कारावास का प्रावधान है।