असीम राज पांडेय, रतलाम। इन दिनों जिले में दो तारों के साहबों पर बुराई का दौर बदस्तूर जारी है। चौराहों पर चर्चा है कि टीआई को कुछ नहीं समझने वाले दो तारों के साहब चौकी के मार्फत बड़े-बड़े खेल के साथ आम जनता से अभद्रता करने से बाज नहीं आते हैं। नतीजतन मामला गरमाने पर किसी भी सूरत में बख्शे भी नहीं जा रहे हैं। जिले के आदिवासी थाना क्षेत्र स्थित फोरलेन की चौकी पर दो तारों के साहब अपनी ठकुराई के कारण हिंदू संगठन को नाराज कर बैठे। चौकी पर ठाकुर साहब से मिलने पहुंचे युवाओं ने चर्चा की तो उन्हें युवाओं का भविष्य बिगाड़ने का लेक्चर देने लगे। तू-तराके से बात करने का ठाकुर साहब का वीडियो भी काफी वायरल हुआ। संगठन की नाराजी कप्तान तक पहुंची तो ठाकुर साहब को फोरलेन की चौकी छोड़कर समीपस्थ राज्य की सीमावर्ती चौकी पर चाकरी के लिए आमद देना पड़ी। इधर बदनाम बस्ती अंतर्गत चौकी के साहब भी उज्जैन निवासी लापता युवक की तलाश में सुस्ताते नजर आए। मामला जब भोपाल तक पहुंचा तो हरकत में आए कप्तान ने दो तारों के साहब को सस्पेंड कर लाइन में जमा कर दिया। ये अंदर की बात है… कि वर्तमान में जिले में दो तारों के साहब न तो थाना प्रभारी को कुछ समझते हैं और न जनता को।
साहब की विदाई की सुगबुगाहट तेज
सड़क, पानी और बिजली की सुविधा वाले कार्यालय के साहब की विदाई की सुगबुगाहट तेज हो गई है। कार्यालय के गलियारों में चर्चा है कि साहब ने रोशनी के पर्व से पहले ही तबादले की कोशिश शुरू कर दी है। राजधानी स्थित मुख्यालय पर अर्जी लगाने के साथ ही साहब ने वर्तमान हालातों के बीच कार्य करने की असमर्थता जता चुके हैं। यह साहब वहीं हैं जो पिछली बार भी एकाएक अपनी इच्छा से तबादला लेकर कुर्सी छोड़कर चले गए थे। इसके बाद राजीव गांधी सिविक सेंटर में रजिस्ट्री और नामांतरण की जादूगरी दिखाने के बाद लोकायुक्त के हाथों नपे तत्कालीन साहब की विदाई के बाद वापस यह साहब कुर्सी संभालने आए थे। दोबारा पारी संभालने पर रतलाम की जनता में आस जगी थी कि चलो पिछले अधिकारी की तुलना में यह अधिकारी बेहतर हैं। जनता की समस्याओं को थोड़ा कम जूझना पड़ेगा। लेकिन इन साहब ने दोबारा रतलाम छोड़ने की कोशिश कर जनता की मंशा पर पानी फेर दिया। हालांकि साहब अभी 10 दिन के अवकाश पर हैं, लेकिन कार्यालय के वरिष्ठों की मानें तो साहब का अवकाश के दौरान ही ट्रांसफर आदेश भोपाल से जारी होगा। ये अंदर की बात है… कि साहब के दोबारा जाने के पीछे उनके मक्कार अधीनस्थों के अलावा कुछ राजनीति समीकरण ऐसे बने हैं जो कि उनकी कार्यप्रणाली के विपरित है।
अभियान को जिम्मेदारों ने दिखाया ठेंगा
जिला मुख्यालय की बदहाल यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए नवागत कप्तान ने एक दिवस एक रोड अभियान की जोर-शोर से शुरुआत की। मीडिया ने भी अभियान को सराहा और जनता ने सोचा कि चलो थोड़ा तो सुधार होगा। लेकिन शहर की यातायात व्यवस्था को संभालने वाले जिम्मेदार कितने नकारा हैं, इसकी बानगी अब तक चले अभियान में साफ झलकती है। नगर निगम के साथ यातायात विभाग के जिम्मेदार संयुक्त रूप से सड़कों पर उतरकर भले ही कप्तान के आदेश पालन में फोटो खिंचवा लें, परंतु फोटो खिंचने के बाद सड़क और चौराहों की हालत जस की तस हो जाती है। लंबे समय से यातायात विभाग में जमे जिम्मेदारों के हर एक चौराहा और फुटपात पर बंदी है। कार्रवाई सिर्फ उनके खिलाफ होती है जो परिवार का पेट पालने के लिए हजार दो हजार रुपए का कर्जा लेकर सामान खरीदकर उसे बेचने की आस में फुटपात पर नया-नया बैठता है। शहर के पुराने फुटपात माफिया सब्जी, भाजी से लेकर फलो और अन्य घरेलु सामान बेचने वालों से एक दिन के 300 से 500 रुपए ऐंठते हैं। फुटपात माफिया इसमें से आधी राशि जिम्मेदारों को देते हैं और शेष खुद डकार जाते हैं। ये अंदर की बात है… कि नवागत कप्तान को अपने और नगर निगम के जादूगरों की कार्यप्रणाली का अंदाजा नहीं है। नहीं तो वह एक दिवस एक रोड अभियान के साथ मॉनीटरिंग भी करवाते और अव्यवस्था होने पर जिम्मेदारों पर कार्रवाई ऐसी करते कि अब तक यातायात विभाग में वर्षों से जमे लाइन में होते।