असीम राज पांडेय, रतलाम। 40 से अधिक अपराधों में लिप्त हिस्ट्रीशीटर के अड्डे पर खाकी ने भले ही दबिश देने में सफलता हासिल की हो, लेकिन साढ़े तीन माह बाद भी उसे गिरफ्तार नहीं कर सकी। छोटे-छोटे अपराधों में इनाम घोषित करने वाली रतलाम की खाकी की फरार हिस्ट्रीशीटर के प्रति हमदर्दी आमजन में नजीर बन चुकी है। शातिर हिस्ट्रीशीटर अरसे से अखाड़े के ऊपर तो कभी क्षेत्र में किराये के मकानों में बड़े पैमाने पर पत्ते फेंटने का धंधा संचालित कर पूर्व और वर्तमान कप्तान की आंखों में धूल झोंक रहा था। साढ़े तीन माह पहले पांचवीं बार में खाकी ने अड्डे से रंगे हाथ पत्ते फेंटते 17 जुआरियों को दबोचा लेकिन हमेशा की तरह शातिर हिस्ट्रीशीटर मौके से फरार हो गया था। सांठगांठ के इस खेल में खाकी ने थाने पर कार्रवाई के दौरान चकमा देकर हिस्ट्रीशीटर का फरार होना दर्शाया था। साढ़े तीन माह बाद भी जुए का अड्डा संचालित करने वाला फरार हिस्ट्रीशीटर बदमाश पर इनाम घोषित नहीं करना अब कई सवालों का जन्म दे चुका है। ये अंदर की बात है… कि हिस्ट्रीशीटर बदमाश बड़े स्तर पर शहर के व्यवसायिक थाने में सांठगांठ कर पत्ते फेंटने का धंधा बेखौफ संचालित कर रहा था। दबिश के बाद से भले ही वह खाकी को नजर नहीं आ रहा हो लेकिन सामाजिक कार्यक्रमों में उसका शामिल होना बदस्तूर जारी है। इसके अलावा पिछले कुछ दिनों से हिस्ट्रीशीटर शहर के व्यवसायिक थाने में सेटिंग से पेश होने की कवायद भी कर चुका है, लेकिन उसके पेश होने के पीछे की कहानी जगजाहिर होने के बाद मामला टल चुका है। हिस्ट्रीशीटर बदमाश जुलूस और अन्य बड़ी कार्रवाई से बचने के लिए 4 लाख रुपए की पेशगी भी कर चुका है। खाकी के कप्तान तक अंदर की बाते पहुंची तो देर रात जिले के थानो के मुखियाओं को इधर-उधर करने वाले लिस्ट में इस व्यवसायिक थाने के मुखिया की रवानगी कप्तान ने कर दी।

अटैच होते ही “चोटीधारी” को मिल गया अवकाश
खाकी के विभाग में कर्मचारियों को अवकाश लेने के लिए काफी मशक्कत करना पड़ती है। शहर के मुख्य थाने में ब्लैकमेलिंग के गंभीर आरोप से घिरा फीतीधारी “चोटीधारी” के खिलाफ शिकायत पहुंचने पर जब कप्तान ने मामले की गंभीरता पर लाइन अटैच कर विभागीय जांच के आदेश दिए। तो “चोटीधारी” खाकीधारी को हाथों-हाथ थाने से अवकाश स्वीकृत हो गया। अपने कुकर्मों पर पर्दा डालने के लिए अवकाश लेने वाला “चोटीधारी” खाकीधारी ने जाल बिछाया। शिकायतकर्ता के खिलाफ कप्तान के सामने उलटी शिकायत करवा दी। आम शिकायतों की तरह कप्तान ने भी शिकायत को जांच के लिए थाने भेजा तो इंतजार में बैठे थाने में छुट्टी लिए “चोटीधारी” और उसके साथी ने ऐसी तत्परता दिखाई कि शिकायतकर्ता के नाम एफआईआर काट दी। एफआईआर के बाद फिर से जब मामला कप्तान तक पहुंचा तो उन्होंने “चोटीधारी”के थाने से रिलीव नहीं होने पर नाराजगी जताई। इसके बाद “चोटीधारी” की थाने से रवानगी हुई। ये अंदर की बात है…कि शातिर “चोटीधारी” पूर्व में भी इस तरह के ब्लैकमेलिंग के बखूबी खेल दिखा चुका है। वर्तमान में चोटीधारी ने जाल कुछ ऐसा ही बिछाया था लेकिन शिकायतकर्ता की निडरता से वह खुद अपने बिछाए जाल में फंस गया। जाल में फंसा चोटीधारी और उसका साथ देने वाले अकर्मण्य कर्मचारी के खिलाफ अब पूरे मामले की शिकायत प्रदेश की सुरक्षा की कमान संभालने वाले मुखिया तक जा पहुंची है। “चोटीधारी” की विभागीय जांच तीन तारों के पास है। बिंदुवार जांच में कप्तान के स्पष्ट निर्देश हैं कि तोड़-मरोड़ कर रिपोर्ट प्रस्तुत की गई तो रडार पर जांच करने वाले भी आएंगे। अब देखना यह है कि तीन तारों के साहब कब तक पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कप्तान के समक्ष प्रस्तुत करते हैं।
हाथ रंगने का खौफ ऐसा कि कुर्सियां हैं खाली
सरकारी विभागों के भ्रष्ट अधिकारी-कर्मचारियों में हाथ रंगने वाले विभाग का खौफ जेहन में बैठ चुका है। नतीजतन सरकारी कार्यालयों में कुर्सियां अब खाली-खाली नजर आने लगी है। आमजन रोजमर्रा के काम के लिए एक टेबल से दूसरी टेबल पर चक्कर काट रहे हैं, लेकिन समय पर काम नहीं हो रहे हैं। देश और प्रदेश के मुखिया भले ही सुशासन के दावें भर लें। जमीनी स्तर पर सरकारी कार्यालयों के भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारियों पर अंकुश बिलकुल नहीं देखा जा रहा। जिले के बड़े बाबू का सरकारी दफ्तरों में अंकुश नहीं होने पर अधीनस्थों की मनमानी बरकरार है। आमजन मकान निर्माण अनुमति से लेकर नामांतरण जैसे छोटे-छोटे कार्यों के लिए उम्मीदों के सहारे चक्कर काट रहे हैं, फिर भी सुनवाई कहीं नहीं हो रही है। ये अंदर की बात है… कि भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारी भले ही आमजन को परेशान करने के लिए कुर्सियों पर नहीं बैठने का दिखावा कर रहे हों, लेकिन उनके जेहन में हाथ रंगने वालों का खौफ काफी व्याप्त है। प्रदेश के मुखिया ने सुबह 10 से शाम 6 बजे तक कार्यालय चालू रखने और उपस्थिति शत-प्रतिशत होने के दावे कुर्सी संभालते ही भरे थे। वर्तमान में दफ्तरों के अंदर कुर्सियां खाली मिलती हैं और बाहर चाकरी करने वाले बोलते हैं कि साहब फील्ड में गए हैं। जब आमजन पूछती है कि साहब कब आएंगे तो चाकरी करने वाले झल्लाकर जवाब देते हैं कि साहब हमें बोलकर नहीं जाते। साहब के आने के इंतजार में सुबह से शाम तक आमजन दफ्तरों के बाहर बैठे रहते हैं लेकिन हाजरी भरकर रवाना हुए साहब दूसरे दिन हाजरी भरने वापस आते हैं। जिले के दफ्तरों में जिम्मेदार अधिकारी और कर्मचारियों के इस रवैये के बावजूद जनप्रतिनिधियों द्वारा मुहं नहीं खोलना पूरे मामले में मौन स्वीकृति पर भी सवाल उपजा रही है।