असीम राज पाण्डेय, रतलाम। तीन दिन पहले पड़ोस के जिले में दर्दनाक हादसे में जिले के 9 लोग जान गवां बैठे। चार घरों के इकलौते चिराग बुझ गए, मातम ऐसा पसरा कि जिले के दो गांव की पांच महिलाओं का सिंदूर उजड़ गया और आंसुओं से गांव भीग गया। देश की राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने दुख जताया, लेकिन शहर के एक खाकी विभाग के जिम्मेदार साहब ने इसी दिन शादी की सालगिरह का जश्न मनाना जरूरी समझा। क्यों नहीं मनाएं? आखिर यह “सरकारी संवेदनशीलता”का नया पैमाना है ‘दर्द को दरकिनार कर दीजिए, जब तक बीवी खुश है, सिस्टम चालू है!’ बंगले पर नॉनवेज के तरह-तरह के व्यंजनों की खुशबू, संगीत की गूंज और शेर-ओ-शायरी की नजाकत में मातम की खामोशी दबा दी गई। साहब के बंगले पर वह सभी अधीनस्थ अपनी-अपनी संवेदना खूंटी पर टांगकर कुछ ऐसे सज-धज कर उपस्थित हुए मानों साहब आज ही फेरे लेंगे। ये अंदर की बात है… कि साहब भले ही छोटे छोटे मसलों पर संवेदनशीलता जाहिर कर हमदर्दी बंटोरते हो, लेकिन मातम के बीच सजी संगीत की महफिल का शोर महकमे में अब काफी तेज है।

मंत्रीजी के ड्रीम प्रोजेक्ट को अफसरों ने बनाया ड्रामा
शहर में पंचवर्षीय योजना नाम का एक ब्रिज आमजन में काफी सुर्खियां बंटोर रहा है। शुरुआत से ही यह ब्रिज अफसरशाही की प्रयोगशाला बन गया है। अधिग्रहण की धीमी गती, रेलवे की अनुमति और लाइट शिफ्टिंग की रोशनी के बाद अब जिम्मेदार विभाग की मनमानी हावी है। सेतु विकास निगम ने ऐसा कार्य किया कि लागत दोगुनी और जनता की उम्मीदें आधी रह गई। मंत्रीजी ने इस ब्रिज को अपने “ड्रीम प्रोजेक्ट” की सूची में शामिल किया था, लेकिन अफसरशाही ने इसे “ड्रामा प्रोजेक्ट” बना डाला। जनता को भरोसा दिलाने के लिए मंत्रीजी ने ऐलान किया था कि “30 अप्रैल 2025 यानी आज दिनांक तक काम पूरा होगा।” अफसरों ने भी सिर हिलाया शायद यह सोचकर कि जैसे बाकी वादे हवा में गए, ये भी उसी दिशा में उड़ जाएगा। नतीजा 70% ब्रिज खड़ा है, 30% अब भी सपनों में तैर रहा है। ये अंदर की बात है… कि रतलाम की जनता परेशान, मंत्रीजी हलाकान और ठेकेदार मस्त। यही तो है ‘गुड गवर्नेंस’।
खजांची के पति देव खिदमतगारी में लेंगे अवॉर्ड
जिले के पंचायत मुख्यालय की महिला खजांची भले ही गांव की सड़क बनाने वाले विभाग में आमद दे चुकी हैं, लेकिन इनके चर्चे पंचायत वाले विभाग में काफी है। पूर्व में जारी हो चुके सरकारी तबादला आदेश को महिला खजांची ने नजरअंदाज किया। अब सात दिन पहले रोड ऑफिस में आमद हुई है, लेकिन आते ही नए विभाग में चर्चा बटोरना शुरू कर दिया। खजांची जी के पति साहब निगम में कभी नंबर दो पर थे, अब लेखा अधिकारी हैं। लेकिन किसका लेखा और किसका जोखा, यह सिर्फ लोकायुक्त की रिपोर्ट जानती है। खजांची के पति देव सरकार की अमानत में खयानत के आरोपों से तो घिरे हैं, इसके बावजूद यह अपनी निजी गाड़ी में सरकारी डीजल और ड्राइवर का वेतन लेने में नहीं चूक रहे। खजांची मैडम की सेवा में जुटे पतिदेव साहब निगम के छोटे छोटे कर्मचारियों से घरेलू कार्य को पूरा करवाने की जिम्मेदारी बखूबी निभाते हैं। ये अंदर की बात है… कि निजी वाहन में सरकारी डीजल और ड्राइवर का बेहतर बंदोबस्त के अलावा घरेलू काम टाइम से करवाने की भावना साहब को पुरस्कार की हकदार बनाती है।