असीम राज पांडेय
रतलाम। शहर में मकान और दुकानों से नियम विरुद्ध कब्जा हटाने का खेल खूब फल रहा है। हाल ही में गायत्री टॉकीज रोड स्थित एक दुकान को असामाजिक तत्वों ने जोर-जबर्दस्ती से दिनदहाड़े खाली कराया। कहानी में शहर के मुख्य थाने के मुखिया से लेकर पटरी पार निवासी एक फूलछाप पार्टी का दुपट्टा डालने वाला कथित नेता ने मुख्य किरदार निभाया। चार दशक तक दुकान संचालन करने वाला पत्नी और बच्चों के साथ फरियाद लेकर संबंधित थाने पर चक्कर काटता रहा, लेकिन थाने के मुखिया के कान में डाले गए गर्म तेल से वह फरियाद सुनने के लायक नहीं रहे। ये अंदर की बात है कि थाने के मुखिया भले ही कितनी ही ईमानदारी का बखान कर लें। लेकिन उनकी कथनी और करनी से महकमा तो दूर आमजन भी अच्छे से वाकिफ है। सवाल यह है कि अगर यह कब्जा बिना चढ़ावा हटता तो क्या संबंधित पुलिस थाने के मुखिया शांतिभंग या चोरी का प्रकरण दर्ज नहीं करते ?
आखिर नेताजी ने क्यों किया दिखावा
नगर के प्रथम माननीय (नेताजी) को पिछले दिनों बेतरतीब वाहनों को पार्किंग में खड़ा करवाने और फोटो खिंचवाने का भूत चढ़ा था। इन माननीय ने प्रमुख चौराहों पर खड़े होकर चिल्ला-चोट के साथ शहर की बदहाल यातायात व्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिश ऐसे दिखाई मानों अब जाम की बीमारी जड़ से खत्म होकर रहेगी। जबकि नेताजी को यह अच्छे से पता है कि जिन बिल्डिंग की अनुमति उनके लाड़ले अभियंता देते हैं वह कितने भ्रष्ट है। शहर में व्यवसायिक ईमारतों की बिल्डिंग का नक्शा कुछ जारी किया जाता है और जमीनी स्तर पर बनता कुछ और है। नक्शा के विपरित निर्माण के इस खेल में लाखों की अवैध कमाई का खेल व्यवस्थित कर्ता (अभियंता) अव्यस्थित होकर करने में जुटे हैं। ये अंदर की बात है कि यह भेंट उन तक भी पहुंचाई जाती है जिन्हें पिछले दिनों बदहाल यातायात को पटरी पर लाने का भूत चढ़ा था। शहर के चौराहों पर चर्चा है कि नेताजी आखिर यह दिखावा क्यों कर रहे हैं, अगर शहरहित में उन्हें यह कदम उठाना ही था सबसे पहले अपने विभाग के उन इंजीनियरों पर कार्रवाई करवाना थी, जिन्होंने इस शहर को रेंगने के लिए मजबूर किया है।
एक हॉल में सिमटी प्रदेश मुखिया की बैठक
पिछले सप्ताह शहर में पंजा पार्टी के नए नवेले प्रदेश मुखिया आए। नई जिम्मेदारी मिलने के बाद मुखिया का पहला दौरा था। मुखिया अपने आकामौला की यात्रा को लेकर रतलाम आए। लेकिन प्रथम आगमन को लेकर हाथछाप के लोगों में कोई उत्साह नजर नहीं आया। उनका स्वागत सत्कार कहीं भी सड़क पर नहीं दिखा। जिले में प्रवेश के दौरान भी शहर से लेकर ग्रामीण तक कोई जोश दिखा नहीं। शहर के एक नेता जो कि फूलछाप स्टेशन रोड कांग्रेसी कहलाते है केवल उन्होंने अपने फोटो लगाकर शहर में फ्लैक्स लगा दिए। इस फ्लैक्स में इनके अलावा ओर कोई स्थानीय स्तर का नेता का फोटो नजर नहीं आया। मुखिया एक बड़ी होटल में बैठक लेने पहुंचे। बैठक एक हॉल में सिमट कर रह गई। चुनींदा हाथछाप के लोग नजर आए। बैठक में भी आकामौला की यात्रा पर चर्चा के बजाए हाथछाप का साथ छोड़ जा रहे दलबदलूओं नेताओं की टीस का बखान हुआ। सभी को एक साथ रहने का मंत्र पढ़ाया। ताकि आकामौला की यात्रा के समय कोई व्यवथान ना हो। शहर में बड़े नेताओं के साथ प्रदेश मुखिया मंच पर बैठे थे तो ग्रामीण के कर्ताधर्ता कार्यकर्ताओं के बीच बैठे रहे। तब एक बड़े नेता ने देख कर उन्हें उनके पास बुलाकर बैठाया। ये अंदर की बात यह है कि शहर व ग्रामीण हाथछाप की जुगलबंदी नहीं बन पा रही है।