असीम राज पाण्डेय , रतलाम। बहुचर्चित राजीव गांधी सिविक सेंटर का भ्रष्टाचार अब जिम्मेदारों को चैन की सांस नहीं लेने दे रहा है। वाक्या कुछ ऐसा है कि नेता प्रतिपक्ष द्वारा नगर सरकार के माननीय पर सिविक सेंटर रजिस्ट्री कांड में संलिप्ता के आरोप लगाए। आरोप की बदनामी को ढंकने के लिए फूलछाप पार्षद दल आगे आया। जिला मुखिया से नेता प्रतिपक्ष के खिलाफ बेबुनियाद आरोप की शिकायत कर सख्त कार्रवाई की मांग कर डाली। यहां तक सब ठीक था, लेकिन शाम को भाजपा पार्षद दल की ओर से जारी प्रेस नोट में ज्वलंत मुद्दा पूरजोर तरीके से उठाने वाले फूलछाप पार्टी के वार्ड माननीय का नाम अंतिम लाइन में लिखा। फूलछाप पार्टी के वार्ड माननीय ने अंतिम लाइन में अपना नाम देख व्हाट्सएप ग्रुप पर नाराजी जता डाली। नाराजी की पीड़ा यहां तक थी कि उन्होंने संसदीय चुनाव के बाद उन नेताओं का भी नाम प्रमाण के साथ खुलासा करने की चेतावनी दी जो कंबल ओढ़कर पूरे मामले में घी पी रहे थे। ये अंदर की बात है कि यह निशाना नगर सरकार के उन माननीय पर था जो अल्प कार्यकाल में कई बार सुर्खियों में छा चुके हैं। वार्ड माननीय का नाराजगी भरा मैसेज ग्रुप पर देख नगर सरकार माननीय ने तत्काल डिलीट कर दिया, लेकिन वार्ड माननीय ने भी कसम खा रखी है कि वह भ्रष्टाचार के दाग पार्टी पर नहीं लगने देंगे।
निंदा से बचने के लिए डायरी में दर्ज हो रहे नाम
साप्ताहिक डायरी को लेकर बड़े चुनाव में जिले की सुरक्षा वाले विभाग में किसी प्रकार की राहत नहीं मिली। महकमें में चर्चा है कि इसके पूर्व प्रदेश के चुनाव में तीन सप्ताह की राहत मिली थी। इस बार साप्ताहिक डायरी का सिलसिला बदस्तूर जारी है। साप्ताहिक डायरी का दबाव पुलिसकर्मियों पर सिर चढ़ा हुआ है। ड्यूटी के रोजमर्रा काम के अलावा साप्ताहिक डायरी का खाका भरने में जुटे कर्मचारी मौसम की तपिश में इतने खिन्न हो चुके हैं कि कई बार थाने में अतिरिक्त कार्य बताने पर हंगामें की स्थिति बन जाती है। ऐसे में घर पर भी दबाव लेकर पहुंचने वाले कर्मचारी का परिवार भी परेशान है। बेसब्री से इंतजार है सभी को आचार संहिता खत्म होने के बाद मुख्यालय से जारी होने वाली सूची का। ये अंदर की बात है कि आचार संहिता खत्म होने के बाद मुख्यालय से नए सिरे से सर्जरी होना लगभग तय है। ऐसे में अभी एक माह शेष है, जिसे लेकर कर्मचारी कैलेंडर पर एक-एक दिन बमुश्किल गुजारने के साथ ऐसे बदमाशों के नाम डायरी पर लिख रहे हैं जिन्हें एक माह के भीतर छोटी-मोटी कार्रवाई कर निंदा से बचने की जुगत में जुटे हैं।
एसी में रहने वाले नेताओं के छूट रहे पसीने
संसदीय चुनाव में अब तक सत्ताधारी पार्टी को उम्मीद से कम प्रतिशत मतदान मायूस किए हुए है। फूलछाप पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इसको लेकर खासा परेशान है। तपिश वाली गर्मी में मतदाताओं का कतार में खड़ा नहीं होना एसी में रहने वाले नेताओं को पसीना छुड़ा रहा है। मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए फूलछाप पार्टी ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है। इधर पार्टीयों की अंदरूनी राजनीति भी किसी से नहीं छिपी है। फूलछाप के संसदीय माननीय से लेकर पूर्व जिला मुखिया का इस चुनाव में कम दिलचस्पी लेना भी चौराहों पर चर्चा का विषय बना हुआ है। फूलछाप के अलावा हाथछाप पार्टी के भी यही हाल हैं। किसान आंदोलन की अगुवाई कर विधानसभा में दावेदारी करने वालों के अलावा जिले की आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में दमखम रखने वाले संसदीय चुनाव से दूर हैं। इन सब को लेकर चर्चा है कि चुनाव परिणाम आने के बाद दोनों पार्टियां चुनाव में निष्क्रय पूर्व पदाधिकारी और नेताओं की जन्मकुंडली नए सिरे से तैयार करेगी। ये अंदर की बात है कि दोनों पार्टियों में चुनाव परिणाम के बाद राजनीति बिसात बिछाकर कुछ ऐसे नए चेहरों को जिम्मेदारी सौंपेंगे जो स्वार्थ से ऊपर उठकर काम कर रहे।